*ABHIJEET RANE (AR)*
मेरे पास आई खबरों के मुताबिक भाजपा और शिंदे गुट के बीच मंत्रियों की संख्या को लेकर फॉर्मूला तय हो चुका है। भाजपा कोटे से 15 और शिंदे गुट के 12 कैबिनेट मंत्री शपथ ले सकते हैं। साथ ही अगर राज्यमंत्री की बात की जाए तो 10 से अधिक भाजपा के राज्यमंत्री और शिंदे गुट के 2 से 5 राज्यमंत्री बनाए जा सकते हैं। इसके लिए इच्छुक लोगों ने सेटिंग शुरू कर दी है।
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ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सिर्फ और सिर्फ विकास की बात करेंगे। शेंडे के मुताबिक, मैं पूरे राज्य का दौरा करने जा रहा हूं और हर निर्वाचन क्षेत्र में परियोजनाओं का आंवटन भी किया जाएगा। मैं अतिशयोक्ति नहीं करता। काम करने के बाद बोलता हूं। राज्य में बदलाव होकर रहेगा। अगर मैं एक बार कोई वादा करता हूं, तो मैं खुद की भी नहीं सुनता, जब तक कि वह पूरा न हो जाए। इस बयान से लगता है कि नए मुख्यमंत्री जरूर ठोस काम करेंगे।
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असली शिवसेना कौन? अब इस पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। सदन में सबसे ज्यादा विधायकों वाला दल एकनाथ शिंदे गुट का है। शिंदे का दो तिहाई गुट और उद्धव ठाकरे का एक तिहाई समूह दो अलग पार्टी के रूप में बन गए हैं। संविधान की 10वीं अनुसूची के अनुसार, अलग हुआ गुट दो तिहाई होना चाहिए। ऐसे में एक तिहाई गुट जो बचा हुआ है वह भी वैध है। ऐसी स्थिति में निर्वाचन आयोग इन दलों को अलग-अलग चुनाव चिन्ह देने पर पर विचार करेगा। जैसे जनता दल के मामले में हुआ था।
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अब फिलहाल शिवसेना के पास कुछ नहीं है। सत्ता एकनाथ शिंदे ले गए। नेता प्रतिपक्ष का पद एनसीपी को चला गया। पूर्व उप-मुख्यमंत्री और एनसीपी के वरिष्ठ नेता अजीत पवार नेता प्रतिपक्ष चुने गए हैं। एकनाथ शिंदे गुट और भारतीय जनता पार्टी की तो राज्य में सत्ता है ही।
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शिवसेना के दोनों गुटों में समझौते को लेकर चर्चा शुरू होने की बात आई है। भाजपा नेताओं का कहना है कि कम से कम एक दर्जन शिवसेना लोकसभा सांसद उनके संपर्क में हैं। भाजपा के एक केंद्रीय मंत्री ने दावा किया है कि महाराष्ट्र में शिवसेना में विभाजन का लोकसभा पर भी असर पड़ेगा क्योंकि कुल 19 में से कम से कम एक दर्जन लोकसभा सदस्य दल बदलने के लिए तैयार हैं। इस बीच शिवसेना सांसदों का एक वर्ग शिंदे और ठाकरे में सुलह कराने के पक्ष में है। देखते हैं क्या होता है।
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